छठ मेरा सबसे प्रिय त्योहार है। बतौर कलाकार तो इसलिए भी कि यह इकलौता त्योहार है, जो गीत- संगीत प्रधान है। अगर आदिवासी समुदाय के पर्व त्योहारों को छोड़ दें, जिनके रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा गीत-संगीत होता है, तो दूसरे किसी त्योहार के बारे में, जिसमें गीत-संगीत इस तरह अनिवार्य तत्व की तरह शामिल अथवा उपस्थित हो और जिसके बिना उस त्योहार की कल्पना तक नहीं की जा सकती, यह नहीं जानती।

एक तो बचपने से ही छठ इस वजह से सबसे ज्यादा पसंद रहा। छोटी थी तो सुनती थी झूंड में महिलाओं को गीत गाते हुए। कितना अच्छा लगता था और अब भी कितना अच्छा लगता है जब समूह में बैठकर छठ करनेवाली महिलाएँ गीत गाती हैं। छठ के असल गीत वही हैं, जो पारंपरिक हैं और जिन्हें गाँव में समूह में बैठकर या फिर छठ घाट जाते समय या कि छठ घाट पहूँचने के बाद महिलाएँ समूह में गाती हैं। बिना संगीत के वह गीत चलता है, सिर्फ समूह गान में लेकिन वह भाव, वह इनोसेंसी छठ गीतों में तमाम तरह के संगीत के प्रयोग भी नहीं आ पाता। यह मेरी निजी राय है, अपनी छोटी समझ के आधार पर कह रही हूँ।

छठ गीत इसलिए भी पसंद रहे कि इसमें परस्पर संवाद की प्रक्रिया चलती है। अगर कोई छठी मइया से या भगवान सूर्य से कुछ माँगता है तो फिर परस्पर संवाद भी चलता है देवता और भक्त के बीच। छठ के गीतों में जब यह परस्पर संवाद की प्रक्रिया चलती है तो लगता है कि यह लोकपर्व क्यों है। लोक की यही तो खासियत है। उसने ही परलोक को गढ़ा है इसलिए वह परलोक से सहज संवाद में विश्वास भी करता है।

छठ गीतों का एक खूबसूरत पक्ष यह भी होता है कि इसमें प्रकृति के तत्व विराजमान रहते हैं। छठ तो वैसे भी प्रकृति का ही पर्व है। सूर्य, नदी-तालाब-कुआं, गन्ना, फल, सूप, दउरी। यही सब तो होता है छठ में और ये सभी चीजें या तो गाँव-गिराँव की चीजें हैं, खेती किसानी की चीजें हैं या प्रकृति की।

मैं कई सालों से सोचती थी कि छठ गीतों को रिकार्ड करूँगी लेकिन नहीं करती थी। हर बार यही सोचकर टाल देती थी कि नहीं, मैं गाँव के गीतों को ही गाऊँगी और उन गीतों को जब गाऊँगी तो गाँव की महिलाओं का जो भाव होता है, उनकी जो लयकारी होती है, उनमें जो इनोसेंसी होती है, वह नहीं ला पाउंगी। फिर दो साल पहले एक ट्रायल एक ऐसे गीत से की, जो छठ गीत भी है और गंगा गीत भी ‘गंगा माई के ऊँची अररिया’। आजमा कर देखी कि कैसा लगता है, कैसी प्रतिक्रिया मिलती है। यह गीत एकदम से ठेठ गंवई गीत है, जिसे महिलाएँ छठ में तो गाती ही गाती हैं, बिना छठ भी जब गंगा स्नान को जाती हैं तो गाती हैं। वह गीत लोगों को पसंद आया। ढेरों रिस्पांस आये तो फिर इस साल उस सिलसिले को आगे बढ़ायी और कुछ गीतों को रिकार्ड की। तीन गीत तो सीधे गाँव से लेकर आयी और एक अपने प्रिय, आदरणीय कलाकार स्व. विंध्यवासिनी देवीजी का कंपोज किया हुआ- ‘पटना के घाट पर नारियर’। यह मगही मूल का गीत है लेकिन विंध्यवासिनी जी की खासियत यह थी कि वे अपने गीतों में बिहार के सभी भाषाओं का समागम करा देती थीं।

बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश के गाँव में सबसे लोकप्रिय छठ गीत। इसे कई लोगों ने अपने यूटयूब पर डाल दिया है। आखर ने भी साझा किया है।

ठेठ बिहारी गाँवों का पारंपरिक गीत, जिसे थोड़ा म्यूजिक के साथ गाने की कोशिश। इस गंवई गीत को पहली बार रिकार्ड की इस बार छठ में।

एक और पारंपरिक छठ गीत. गाँव की महिलाएँ जिस तरह से गाती हैं, उसी धुन को थोड़ा परिमार्जित कर गाने की कोशिश। हाल ही में गाई इसे।

लेखक- पुरबियातान फेम लोक गायिका ‘चंदन तिवारी’ 

Facebook Comments Box

Leave a Comment